Tuesday 15 August 2017

शायक आलोक की तीन बेहतरीन कविताऐं


   शायक आलोक की  तीन बेहतरीन कविताऐं




    

   ( 1 )

होआ नहीं होती
घर से भागी हुई लड़कियां

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होआ नहीं होती
घर से भागी हुई लड़कियां
पहनती है पूरे कपड़े
संभाल के रखती है खुद को
एक करवट में गुजारी रात के बाद
सुबह अंधेरे पिता को प्रणाम करती हैं
मां के पैरों को देख आंसू बहाती है
गली के आखिरी मोड़ तक मुड़ मुड़कर देखती है

घर के देवता को सौंप आती है मिन्नते अपनी।

प्रेयस देख मुस्कुराती है घर से भागी हुई लड़कियां
विश्वास से कंधे पर रख देती है सर अपना
मजबूत होने का नाटक करती,
पकड़ती है हथेली ऐसे
जैसे थाम रखा हो पिता ने नन्ही कलाई उसकी
और सड़क पार कर जाती है।

नए घर के कच्चे मुंडेर से
रोज आवाज लगाती हैं भागी हुई लड़कियां
वही रोप देती है एक तुलसी बिरवां,
रोज-रोज सभांलती गृहस्थी अपनी
कौआे को फैंकती है रोटी
 मां से सुख दुख की बातें चिड़िया को सुनाती है।

 फफफ..क कर रो देती हैं घर से भागी हुई लड़कियां
 घर से भागी हुई लड़कियां
 होआ नहीं होती ।

  ( 2 )

  लड़के

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लड़के भी छुपा रख आते हैं अपनी उम्र
मां के पुराने संदूक में
लड़के भी कभी तेल लगा बाल बनाते हैं
छुप कर रोते हैं लड़के
मां की मन तोड़ देने वाली झिड़की पर
लड़के छत पर चिड़ियों से मन की बातें बताते हैं
नाव पर रख देते हैं प्यार वाली चिट्ठी
गुनगुनाते नाव को पार लगाते हैं

लड़कियों से नहीं रहे लड़के
दोस्तों से नहीं बात पाते मन की पीड़ा
सुलगते हैं खुद के भीतर
लड़के छुपकर कश लगाते हैं ।

धीरे धीरे लड़की नहीं होने का हुनर सीखते लड़के
एक दिन बड़े हो जाते हैं।


    ( 3 )
मेरी चाय को तुम्हारी 

फूंक चाहिए सादिया हसन

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 मेरी चाय को तुम्हारी
फूंक चाहिए सादिया हसन,
यह चाय इतनी गर्म कभी ना थी।
इसकी मिठास इतनी कम कभी ना थी।

मैं सूंघता हूं मुल्क की हवा में लहू की गंध
कल मेरे कमरे पर आए लड़के ने पूछा मुझसे कि
" क्रिया की प्रतिक्रिया " में पेट फाड़ अजन्मे शिशु को
 मार देंगे क्या ?
 बलात्कार के बाद लाशें को जला देंगे क्या ? "

हम दोनों फिर चुप रहे सादिया हसन
 हम दोनों फिर चुप रहे सादिया हसन

हमारी चाय रखी हुई ठंडी हो गई।
हम फूलों तितलियों शहद की बातें करते थे
हम हमारे दो अजनबी शहरों की बातें करते थे
हम चाय पर जब भी मिलते थे
बदल लेते थे नजर चुरा कर,
हमारे चाय की गिलास।
पहली बार तुम्हारी झूठी चाय पी तो
तुमने हे राम कहा था,
मेरा खुदा तुम्हारे हे राम पर मिट गया था।

पर उस सुबह की चाय पर
सब कुछ बदल गया सादिया हसन
एक और बार अपने असली रंग में दिखी
यह कौमें.. यह नस्लें...यह मेरा तुम्हारा मादरे वतन।
टीवी पर आग थी..खून था..लाशे थी...

उस दिन खरखराहट थी तुम्हारे फोन में आवाज में
 तुमने चाय बनाने का बहाना कर फोन रख दिया

 मैं जानता हूं उस दिन देर तक ऊबाली होगी चाय
 मैंने कई दिन तक चाय नहीं पी सादिया हसन

 ठंडी हो गई खबरों के बीच तुम्हारी चिट्ठी मिली थी "गुजरात बहुत दूर नहीं है यहां से
और वह मुझे मारने आए तो
तुम्हारा नाम ले लूंगी
तुम्हें मारने आए तो
मेरे नाम के साथ कलमा पढ़ लेना
और मैं याद करुंगी तुम्हें शाम सुबह की चाय के वक़्त तुम्हारे राम से डरती रहूंगी ताउम्र
मेरे अल्लाह पर ही मुझे अब कहां रहा यकीन "

तुम्हारे निकाह की खबरों के बीच
फिर तुम गायब हो गई सादिया हसन
मैंने तुम्हारा नाम उसी लापता लिस्ट में जोड़ दिया
जिस लिस्ट में कई लापता सादियां सुमिनओं के नाम थे
नाम थे दोसाला चारसाला बारहसाला अब्दुला के अनवरो के।

हज़ारों चाय के साथ यह वक्त गुजर गया
मैं चाय के साथ अभी अखबार पढ़ रहा हूं  सादिया हसन खबर है कि गुजरात अब दूर नहीं रहा
मुल्क के हर कोने तक पहुंच गया है।

 मेरे हाथ की चाय गरम हो गई है।
यह चाय इतनी गरम कभी न थी।
इस की मिठास इतनी कम कभी ना थी सादिया हसन

मेरी चाय को तुम्हारी
फूंक चाहिए सादिया हसन ।

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