Saturday 2 September 2017

रेहाना जब्बार का फाँसी पूर्व लिखा खत - " मुझे हवाओं में मिल जाने दे माँ "


      " मुझे हवाओं में मिल जाने दे माँ  "

                   

                        - रेहाना जब्बार -





   

  1.        भारतीय न्याय प्रणाली द्वारा बाबा राम रहीम को बलात्कार के इल्ज़ाम में दी गई दस-दस साल की सजा भले ही बेहद कम हो लेकिन कम से कम न्यायालय ने अपनी साख तो बचाई वरना लोकतंत्र का डब्बा तो अपना जादू बिखेर ही रहा है। यह निर्णायक फैसला हमें ईरान की रेहाना जब्बारी की याद दिलाता है जिसने अपने बलात्कार के आरोपी की हत्या तब की थी, जब आरोपी उसका बलात्कार करने की कोशिश कर रहा था। रेहाना को इस जुर्म के लिए ईरान न्यायालय ने फाँसी की सज़ा मुकर्रर की थी। अब सवाल यह है कि अगर वह लड़की भी उसी वक़्त आरोपी की हत्या कर देती तो हमारी न्यायालय प्रणाली क्या करती...? यह बस एक छोटा-सा सवाल है। इस पर ज़्यादा सोचिएगा भी मत ..? क्योंकि हम यहाँ इस निर्णायक फैसले के उपलक्ष्य में रेहाना जब्बारी का फाँसी से पूर्व लिखा गया खत पेश कर रहे है जो शायद हमारे भविष्य की कहानी हो सकता है -



प्यारी शोले,
                मुझे आज पता चला कि अब मेरी क़िसास की बारी आ गई है। मुझे इस बात कि दुख है कि आपने मुझे यह क्यों नहीं बताया कि मैं अपनी ज़िंदगी की किताब के आख़िरी पन्ने तक पहुँच चुकी हूँ।आपको नहीं लगता कि मुझे ये जानना चाहिए था..?आप जानती हैं कि मैं इस बात से कितनी शर्मिन्दा हूँ कि आप दुखी हैं। आपने मुझे आपका और अब्बा का हाथ चूमने का मौक़ा क्यों नहीं दिया?

       दुनिया ने मुझे 19 बरस जीने का मौक़ा दिया। उस अभागी रात को मेरी हत्या हो जानी चाहिए थी। उसके बाद मेरे जिस्म को शहर के किसी कोने में फेंक दिया जाता और कुछ दिनों बाद पुलिस आपको मेरी लाश की पहचान करने के लिए मुर्दाघर ले जाती और वहाँ आपको पता चलता है कि मेरे साथ बलात्कार भी हुआ था। मेरा हत्यारा कभी पकड़ा नहीं जाता क्योंकि हमारे पास उसके जितनी दौलत और ताक़त नहीं है।उसके बाद आप अपनी बाक़ी ज़िंदगी ग़म और शर्मिंदगी में गुज़ारतीं और कुछ सालों बाद इस पीड़ा से घुट-घुट कर मर गई होतीं और ये भी एक हत्या ही होती।

     लेकिन उस मनहूस हादसे के बाद कहानी बदल गयी। मेरे शरीर को शहर के किसी कोने में नहीं बल्कि कब्र जैसी एविन जेलउसके सॉलिटरी वार्ड और अब शहर-ए-रे की जेल जैसी कब्र में फेंका जाएगा। लेकिन आप इस नियति को स्वीकार कर लें और कोई शिकायत न करें। आप मुझसे बेहतर जानती हैं कि मौत ज़िंदगी का अंत नहीं होती।

       आपने मुझे सिखाया है कि हर इंसान इस दुनिया में तजुर्बा हासिल करने और सबक सीखने आता है। हर जन्म के साथ हमारे कंधे पर एक ज़िम्मेदारी आयद होती है। मैंने जाना है कि कई बार हमें लड़ना होता है।मुझे अच्छी तरह याद है कि आपने मुझे बताया था कि बघ्घी वाले ने उस आदमी का विरोध किया था जो मुझपर कोड़े बरसा रहा था लेकिन कोड़ेवाले ने उसके सिर और चेहरे पर ऐसी चोट की जिसकी वजह से अंततः उसकी मौत हो गयी। आपने मुझसे कहा था कि इंसान को अपने उसूलों को जान देकर भी बचाना चाहिेए।
  
         जब हम स्कूल जाते थे तो आप हमें सिखाती थीं कि झगड़े और शिकायत के वक़्त भी हमें एक भद्र महिला की तरह पेश आना चाहिए। क्या आपको याद है कि आपने हमारे बरताव को कितना प्रभावित किया हैआपके अनुभव ग़लत थे। जब ये हादसा हुआ तो मेरी सीखी हुई बातें काम नहीं आयीं। अदालत में हा़ज़िर होते वक़्त ऐसा लगता है जैसे मैं कोई क्रूर हत्यारा और बेरहम अपराधी हूँ। मैं ज़रा भी आँसू नहीं बहाती। मैं गिड़गिड़ाती भी नहीं। मैं रोई-धोई नहीं क्योंकि मुझे क़ानून पर भरोसा था।

       लेकिन मुझपर ये आरोप लगाया गया कि मैं जुर्म होते वक़्त तटस्थ बनी रही। आप जानती हैं कि मैंने कभी एक मच्छर तक नहीं मारा और मैं तिलचट्टों को भी उनके सिर की मूँछों से पकड़कर बाहर फेंकती थी। अब मैं एक साजिशन हत्या करने वाली कही जाती हूँ। जानवरों के संग मेरे बरताव की व्याख्या मेरे लड़का बनने की ख़्वाहिश के तौर पर की गयी। जज ने ये देखना भी गंवारा नहीं किया कि घटना के वक़्त मेरे नाख़ून लंबे थे और उनपर नेलपालिश लगी हुई थी।

     जजों से न्याय की उम्मीद करने वाले लोग कितने आशावदी होते हैं! किसी जज ने कभी इस बात पर सवाल नहीं उठाया कि मेरे हाथ खेल से जुड़ी महिलाओं की तरह सख्त नहीं हैं। ख़ासतौर पर मुक्केबाज़ लड़कियों के हाथों की तरह और ये देश ,qजिसके लिए आपने मेरे दिल में मुहब्बत भरी थीवो मुझे कभी नहीं चाहता था। जब अदालत में  मेरे ऊपर सवाल-जवाब का वज्र टूट रहा था और मैं रो रही थी और अपनी ज़िंदगी के सबसे गंदे अल्फ़ाज़ सुन रही थी तब मेरी मदद के लिए कोई आगे नहीं आया। जब मैंने अपनी ख़ूबसूरती की आख़िरी पहचान अपने बालों से छुटकारा पा लिया तो मुझे उसके बदले 11 दिन तक तन्हा-कालकोठरी में रहने का इनाम मिला।

      प्यारी शोलेआप जो सुन रही हैं उसे सुनकर रोइएगा नहीं। पुलिस थाने में पहले ही दिन एक बूढ़े अविवाहित पुलिस एजेंट ने मेरे नाखूनों के लिए मुझे चोट पहुँचायी। मैं समझ गयी कि इस दौर में सुंदरता नहीं चाहिए। सूरत की ख़ूबसूरती,ख़्यालों और ख़्वाबों की ख़ूबसूरतीख़ूबसूरत लिखावटआँखों और नज़रिए की ख़ूबसूरती और यहाँ तक कि किसी प्यारी आवाज़ की ख़ूबसूरती भी किसी को नहीं चाहिए।

     मेरी प्यारी माँमेरे विचार बदल चुके हैं और इसके लिए आप ज़िम्मेदार नहीं है। मेरी बात कभी ख़त्म नहीं होने वाली और मैंने इसे किसी को पूरी तरह दे दिया है ताकि जब आपकी मौजूदगी और जानकारी के बिना मुझे मृत्युदंड दे दिया जाए तो उसके बाद इसे आपको दे दिया जाए। मैं आपके पास अपने हाथों से लिखी इबारत धरोहर के रूप में छोड़ी है।

     हालाँकि, मेरी मौत से पहले मैं आपसे कुछ माँगना चाहती हूँ, जिसे आपको अपनी पूरी ताक़त और कोशिश से मुझे देना है। दरअसल बस यही एक चीज़ है जो अब मैं इस दुनिया से, इस देश से और आपसे माँगना चाहती हूँ। मुझे पता है आपको इसके लिए वक़्त की ज़रूरत होगी। इसलिए मैं आपको अपनी वसीयत का हिस्सा जल्द बताऊँगी। आप रोएँ नहीं और इसे सुनें। मैं चाहती हूँ कि आप अदालत जाएँ और उनसे मेरी दरख़्वास्त कहें। मैं जेल के अंदर से ऐसा ख़त नहीं लिख सकती जिसे जेल प्रमुख की इजाज़त मिल जाए, इसलिए एक बार फिर आपको मेरी वजह से दुख सहना पड़ेगा। मैंने आपको कई बार कहा है कि मुझे मौत की सज़ा से बचाने के लिए आप किसी से भीख मत माँगिएगा लेकिन यह एक ऐसी ख़्वाहिश है जिसके लिए अगर आपको भीख माँगनी पड़े तो भी मुझे बुरा नहीं लगेगा।

      मेरी अच्छी माँ, प्यारी शोले, मेरी ज़िंदगी से भी प्यारी, मैं ज़मीन के अंदर सड़ना नहीं चाहती। मैं नहीं चाहती कि मेरी आँखे और मेरा नौजवान दिल मिट्टी में मिल जाए इसलिए मैं भीख माँगती हूँ कि मुझे फांसी पर लटकाए जाने के तुरंत बाद मेरे दिल, किडनी, आँखें, हड्ड्याँ और बाक़ी जिस भी अंग का प्रतिरोपण हो सके। उन्हें मेरे शरीर से निकाल लिया जाए और किसी ज़रूरतमंद इंसान को तोहफे के तौर पर दे दिया जाए। मैं नहीं चाहती कि जिसे मेरे अंग मिलें उसे मेरा नाम पता चले, वो मेरे लिए फूल ख़रीदे या मेरे लिए दुआ करे। मैं सच्चे दिल से आपसे कहना चाहती हूँ कि मैं अपने लिए कब्र भी नहीं चाहतीं, जहाँ आप आएँ, मातम मनाएँ और ग़म सहें। मैं नहीं चाहती कि आप मेरे लिए काला लिबास पहनें। मेरे मुश्किल दिनों को भूल जाने की आप पूरी कोशिश करें। मुझे हवाओं में मिल जाने दें।

       दुनिया हमें प्यार नहीं करती। इसे मेरी ज़रूरत नहीं थी और अब मैं इसे उसी के लिए छोड़ कर मौत को गले लगा रही हूँ क्योंकि ख़ुदा की अदालत में मैं, इंस्पेक्टरों पर मुक़दमा चलावाऊँगी, मैं इंस्पेक्टर शामलू पर मुक़दमा चलवाऊँगी । मैं जजों पर मुक़दमा चलवाऊँगी और देश के सुप्रीम कोर्ट की अदालत के जजों पर भी मुक़दमा चलवाऊँगी जिन्होंने ज़िंदा रहते हुए मुझे मारा और मेरा उत्पीड़न करने से परहेज नहीं किया। दुनिया बनाने वाली की अदालत में मैं डॉक्टर फरवंदी पर मुक़दमा चलवाऊँगी, मैं क़ासिम शाबानी पर मुक़दमा चलवाऊँगी और उन सब पर जिन्होंने अनजाने में या जानबूझकर मेरे संग ग़लत किया और मेरे हक़ को कुचला और इस बात पर ध्यान नहीं दिया कि कई बार जो चीज़ सच नज़र आती है वो सच होती नहीं।

      प्यारी नर्म दिल शोले, दूसरी दुनिया में मैं और आप मुक़दमा चलाएंगे और दूसरे लोग अभियुक्त होंगे। देखिए, ख़ुदा क्या चाहते हैं. ..मैं तब तक आपको गले लगाए रखना चाहती हूँ जब तक मेरी जान न निकल जाए। मैं आपसे बहुत प्यार करती हूँ।

रेहाना
01, अप्रैल, 2014

( साभार ' नवगीत ' पत्रिका जनवरी 2016 )

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