Wednesday 18 July 2018

एक अलग रंग-भाषा और जन-भाषा के कवि : राजेश जोशी


     एक अलग रंग-भाषा और जन-भाषा के कवि :                              राजेश जोशी 


   


        राजेश जोशी जी 21वीं सदी के बचे हुए उन कवियों में शुमार है जिनकी कविता अपने समय का लोकप्रिय मुहावरा बनी है। एक अलग रंग-भाषा के, जन-भाषा के कवि । अलग चाल-ढाल की कविताएं । इनकी कविताएं आपको घुसपेठिया बनाती चलेगी। अपने समय से संवाद करने को उकसाएगी। नुक्ताचीनी बनाएगी । देश समाज व्यक्ति पत्थर फूल हवा पानी आकाश माने कि पृथ्वी की हर शह की पूंछ और मुंह के बीच के द्वंद्व से राब्ता कराएगी। राजेश जी की कविता से मैंने तो खुद को बहुत नकारा है। मैंने इन्हीं की कविताओं से पाया है कि अपने अंधेरे को रोशनी मत दिखाओ । अंधेरे में बैठकर अंधेरे के गीत गाओ। जब आपको कुछ ना सूझे। जब आपको कुछ ना विचारे । जब आपका हृदय सोचने लगे कि अब करने को करने को कुछ नहीं बचा तो आप राजेश जोशी जी की कविताओ के साथ बैठकर चाय पीजिए, आप सुंदर होते चले जाएगें।
राजेश जोशी जी को जन्मदिन की बधाई।
आशा करते है कि आप रहे या न रहे, आपके समय का मुहावरा रहेगा।


       ( 1 )
बच्चे काम पर जा रहे हैं 

कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
सुबह सुबह
बच्‍चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण के तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्‍यों जा रहे हैं बच्‍चे?
क्‍या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्‍या दीमकों ने खा लिया हैं
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्‍या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्‍या किसी भूकंप में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें
क्‍या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्‍म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्‍या है इस दुनिया में?
कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्‍यादा यह
कि हैं सारी चीज़ें हस्‍बमामूल
पर दुनिया की हज़ारों सड़कों से गुजते हुए
बच्‍चे, बहुत छोटे छोटे बच्‍चे
काम पर जा रहे हैं।

 ( 2 )
रूको बच्‍चो

रूको बच्‍चो रूको !
सड़क पार करने से पहले रुको
तेज रफ़्तार से जाती इन गाड़ियों को गुज़र जाने दो
वो जो सर्र से जाती सफ़ेद कार में गया
उस अफ़सर को कहीं पहुँचने की कोई जल्‍दी नहीं है
वो बारह या कभी-कभी तो इसके बाद भी पहुँचता है अपने विभाग में
दिन, महीने या कभी-कभी तो बरसों लग जाते हैं
उसकी टेबिल पर रखी ज़रूरी फ़ाइल को ख़िसकने में

रूको बच्‍चो !
उस न्‍यायाधीश की कार को निकल जाने दो
कौन पूछ सकता है उससे कि तुम जो चलते हो इतनी तेज़ कार में
कितने मुक़दमे लंबित हैं तुम्‍हारी अदालत में कितने साल से
कहने को कहा जाता है कि न्‍याय में देरी न्‍याय की अवहेलना है
लेकिन नारा लगाने या सेमीनारों में बोलने के लिए होते हैं ऐसे वाक्‍य
कई बार तो पेशी दर पेशी चक्‍कर पर चक्‍कर काटते
ऊपर की अदालत तक पहुँच जाता है आदमी
और नहीं हो पाता इनकी अदालत का फ़ैसला

रूको बच्‍चो ! 
सडक पार करने से पहले रुको
उस पुलिस अफ़सर की बात तो बिल्‍कुल मत करो
वो पैदल चले या कार में
तेज़ चाल से चलना उसके प्रशिक्षण का हिस्‍सा है
यह और बात है कि जहाँ घटना घटती है
वहां पहुँचता है वो सबसे बाद में

रूको बच्‍चों रुको
साइरन बजाती इस गाडी के पीछे-पीछे
बहुत तेज़ गति से आ रही होगी किसी मंत्री की कार
नहीं, नहीं, उसे कहीं पहुँचने की कोई जल्‍दी नहीं
उसे तो अपनी तोंद के साथ कुर्सी से उठने में लग जाते हैं कई मिनट
उसकी गाड़ी तो एक भय में भागी जाती है इतनी तेज़
सुरक्षा को एक अंधी रफ़्तार की दरकार है
रूको बच्‍चो !
इन्‍हें गुज़र जाने दो
इन्‍हें जल्‍दी जाना है
क्‍योंकि इन्‍हें कहीं पहुँचना है
                              
                               ( 3 )
                            मारे जाएँगे 

जो इस पागलपन में शामिल नहीं होंगे, मारे जाएँगे
कठघरे में खड़े कर दिये जाएँगे

जो विरोध में बोलेंगे

जो सच-सच बोलेंगे, मारे जाएँगे
बर्दाश्‍त नहीं किया जाएगा कि किसी की कमीज हो

उनकी कमीज से ज्‍यादा सफ़ेद

कमीज पर जिनके दाग नहीं होंगे, मारे जाएँगे
धकेल दिये जाएंगे कला की दुनिया से बाहर

जो चारण नहीं होंगे

जो गुण नहीं गाएंगे, मारे जाएँगे
धर्म की ध्‍वजा उठाने जो नहीं जाएँगे जुलूस में

गोलियां भून डालेंगी उन्हें, काफिर करार दिये जाएँगे
सबसे बड़ा अपराध है इस समय निहत्थे और निरपराधी होना

जो अपराधी नहीं होंगे, मारे जाएँगे

( 4 )
उन्होंने रंग उठाए 

उन्होंने रंग उठाए

और आदमी को मार डाला

उन्होंने संगीत उठाया

और आदमी को मार डाला

उन्होंने शब्द उठाए

और आदमी को मार डाला ।
हत्या का

एकदम नया नुस्ख़ा

तलाश किया उन्होंने

उन्होंने

आदमी के गुस्सैल चेहरे

और चाकू को

चमकदार

रंगीन दीवारों और रोशनियों के बीच

बेहद सूझ-बूझ

और सलीके से

सजा दिया

और लड़ाई को कुचल दिया
और आदमी को मार डाला ।


    ( 5 )

हर जगह आकाश


बोले और सुने जा रहे के बीच जो दूरी है
वह एक आकाश है
मैं खूंटी से उतार कर एक कमीज पहनता हूं
और एक आकाश के भीतर घुस जाता हूं
मैं जूते में अपना पांव डालता हूं
और एक आकाश मोजे की तरह चढ़ जाता है
मेरे पांवों पर
नेलकटर से अपने नाखून काटता हूं
तो आकाश का एक टुकड़ा कट जाता है
एक अविभाजित वितान है आकाश
जो न कहीं से शुरू होता है न कहीं खत्म
मैं दरवाजा खोल कर घुसता हूं, अपने ही घर में
और एक आकाश में प्रवेश करता हूं
सीढ़ियां चढ़ता हूं
और आकाश में धंसता चला जाता हूं
आकाश हर जगह एक घुसपैठिया है

 ( 6 )

पृथ्वी का चक्कर

यह पृथ्वी सुबह के उजाले पर टिकी है
और रात के अंधेरे पर
यह चिड़ियो के चहचहाने की नोक पर टिकी है
और तारों की झिलमिल लोरी पर
तितलियाँ इसे छूकर घुमाती रहती हैं
एक चाक की तरह
बचपन से सुनता आया हूँ
उन किस्साबाजों की कहानियों को जो कहते थे
कि पृथ्वी एक कछुए की पीठ पर रखी है
कि बैलों के सींगों पर या शेषनाग के थूथन पर,
रखी है यह पृथ्वी
ऐसी तमाम कहानियाँ और गीत मुझे पसन्द हैं
जो पृथ्वी को प्यार करने से पैदा हुए हैं!
मैं एक आवारा की तरह घूमता रहा
लगातार चक्कर खाती इस पृथ्वी के
पहाड़ों, जंगलों और मैदानों में
मेरे भीतर और बाहर गुज़रता रहा
पृथ्वी का घूमना
मेरे चेहरे पर उकेरते हुए
उम्र की एक एक लकीर।


( 7 )
यह समय

यह मूर्तियों को सिराये जाने का समय है ।

मूर्तियाँ सिराई जा रही हैं ।
दिमाग़ में सिर्फ़ एक सन्नाटा है
मस्तिष्क में कोई विचार नहीं
मन में कोई भाव नहीं
काले जल में, बस, मूर्ति का मुकुट
धीरे-धीरे डूब रहा है !







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