बदलती दुनिया और संक्रमित हो रहे समाज की सोच-विचारधारा के साथ-साथ जामिया-रंगमंच रंगमंच की एक नई प्रयोगशाला को व्यवस्थित कर रहा है। कोई अतिशियोक्ति नहीं होगी, अगर जामिया को रंगमंच का पर्याय कहा जाये क्योकि दो वर्षों में जिस तरह का हस्तक्षैप जामिया-रंगमंच ने रंगमंच की दुनिया में किया है, वे आश्चर्येजनक ही नहीं, एक कदम है व्यावसायिकता के इस युग में रंगमंच को पुनः परिभाषित करने का। एक कदम है- उस पंरपरा को पुन: जीवित करने का जिसे रंगमंच के पुरोधा अपनी-अपनी स्मृतियों में लेकर राख होते गए। एक कदम है- रंगमंच का लोगो के जीवन में अर्थ प्रदान करने और लोगो को भावी जीवन के लिए नुक्ताचीं बनाने में ।
जामिया की इस नयी कवायद को अमली जामा पहनाने में जिस व्यक्तित्व का हस्ताक्षर है, वह है -रंगमंचीयी कोलाज पर उभरा हुआ युवा-रंग, रंगकर्मी अदनान बिस्मिल्लाह। जामिया के सांस्कृतिक इतिहास में इतिहास रचने वाला ऐसा व्यक्तित्व जिसने राष्ट्रीय स्तर और रंगमंच के कैनवास पर जामिया-रंगमंच के इन्द्रधनुष को उकेरा। यह वह व्यक्तित्व है जिसने जामिया को "कल्चरल-हब" बनने में लोहार की तरह कड़क और कुम्हार की तरह रचनाशील होकर कार्य किया कि आज प्रत्येक विभाग रंगमंचयी प्रस्तुतियां देने में अग्रणियी साबित हो रहा है। आज जामिया के ड्रामा क्लब के इतर, विभाग की ओर से भी रंगमंच की प्रासंगिकता के अर्थ को सिद्ध करने, उसकी आवश्यकता को पाठ्यक्रम जितना ही महत्व दिलाने और विघाथियों में रंगमंच के प्रति समझ पैदा करने के लिए एक नई तरह की व्यवस्था को व्यवस्थित किया जा रहा है जो सिर्फ़ रंगकमी अदनान बिस्मिल्लाह के कार्यशील और प्रयोगशील रहने का ही नतीजा है जिस कारण आज उन्हें जामिय-रंगमंच के नए अध्येता के रूप में स्वीकार किया जा रहा है।
आज यह देखकर बड़ा ही ताज्जुब होता है कि जिस ड्रामा क्लब से उन्होनें अपने रंगमंच की शुरूआत की थी, आज वह उसी ड्रामा क्लब के निर्देशक पद पर असीन है। इस तरह उपलब्धि कुछ ही लोगो की किस्मत में बदी होती है कि जिस बरगद की छत्र-छाया में आप फले हो, आप भी उसी की तरह एक बरगद में तबदील हो जाए । लेकिन यह सब कहने की बात होती है क्योकि कोई यूँही बरगद नहीं हो जाता है। एक टहनी से बरगद हो जाने में उसे एक सदी-सी बीत जाती है और इसलिए अदनान बिस्मिल्लाह को भी रंगमंच के क्षेत्र में घुसपैठ करने तथा अपना मुकाम हासिल करने के लिए संघर्ष की हर धारा से गुज़रना पड़ा है।
जामिया में पी.जी.डिप्लोमा इन जर्नलिज्म में दाखिला-प्रवेश के बाद उन्होंने जामिया ड्रामा क्लब में प्रवेश पाया लेकिन मात्र ६ महीने ही उन्हें वहाँ से विदा लेनी पड़ गयी मगर इस दौरान ही उन्होंने जामिया को नाॅर्थ-ज़ोन और नेशनल सांस्कृतिक यूथ काॅम्पीटीशन में रीपिरसेंट किया । ड्रामा-कल्ब छोड़ देने के बाद उन्होनें जामिया में ही अपना एक नया थिएटर ग्रुप शुरू किया और उसका नाम रखा - " प्रतिभा उन्नयन नाटिये मंच " और यही से उनके रंगमंच के संघर्ष की शुरूआत होती है। उनकी यह शुरूआत भी दिलचस्प शुरूआत थी कि उन्हें जिस क्षेत्र में स्वंय को स्थापित और अपनी दावेदारी का लोहा मनवाना था। उसके विषय में ना तो किसी संस्थान से कुछ सीखा था और नहीं समझा और नाहीं कोई कागज़ का तुकड़ा लिया था जिसपर लिखा हो कि आप रंगमंच के बग़ीचे मे अपनी पौध लगा सकते है। उन्हें तो सड़क पर चलना था। सड़क से सीखना था और सड़क पर ही प्रयोग करना था यानि कि सड़क ही उनके के लिए रंगमंच का विश्वाविद्यालय बनी और सड़को पर चलने वाले लोग उनके महान शिक्षक बने जिनसे जो भी सीखा, उसे अपने रंगकर्म में उकेरते गए।
एक दो साल बाद इन्होने दूरदर्शन में नौकरी के लिए आवेदन दिया और स्वीकृत हुआ जहाँ दूरदर्शन में रेह्कर कई मशहूर प्रोग्राम को प्रोडयूसड किया जिसमें " धरती नाचे एम्बर गाए " " दूरदर्शन के सुनहरे वर्ष " । कई नामचीन हस्तियों के साथ इंटरव्यू लिए जिसमे विष्णु प्रभाकर, श्याम बेनेगल, मन्ना डे, मशहूर डांसर सोनल मन सिंह आदि । '' Glimpes of dehli '' डोक्युमेंट्री में निर्देशक के तौर पर काम किया। तो " खानम " सीरियल में अस्सिटेंट डिरेक्टर और एक अभिनेता के तौर पर भूमिका निभाई। मगर दूरदर्शन के साथ इनका सफर छ: वर्ष का ही रहा और किन्हीं कारणो से इस्तीफा देने के बाद पूरी तरह से थिएटर के लिए ही समर्पित हो गए और फिर जामिया में अपने थिएटर ग्रुप के साथ-साथ शहीद भगत सिंह, काॅलेज , पी.जी.डी.ए.वी. काॅलेज, बिला बोंग इंटरनेशनल हाई स्कूल नॉएडा, मानवभारती इंटरनेशनल पब्लिक स्कूल आदि में थिएटर कोच रहे। जामिया के फाइन आर्ट्स विभाग में स्टेज-क्राफ्ट के इंस्ट्रक्टर और इंस्टिट्यूट ऑफ़ मीडिया मैनेजमेंट एंड कम्युनिकेशन स्किल्स में थियेटर- कोच के रूप में कार्य किया और आज जामिया ड्रामा क्लब के को-कविहनेर और हॉबी क्लब के इंचार्ज है और जामिया-रंगमंच की ओर से होने वाली सभी प्रस्तुतियों का कार्यभार संभालते है ।
बारह से तेहरा वर्षो के अपने रंगकर्म में इन्होंने १०० के करीब नुक्कड़ों की प्रस्तुतियां दी । जिसमें गिरगिट, औरत , अपहरण बेचारे का, पुलिस चरित्रम, कुर्सी , बात का बतंगड़, सोच एक सवाल, संघर्ष हमारा नारा है, सड़क पर घर, मेह्गाई की मार, आर्तनाद, सोच आदि । कई मंच प्रस्तुतियां जिसमे - कफ़न, हवालात, कंजूस, दुलारी बाई, सबसे बड़ा आदमी, जवानी की डिब्बी, दो पैसे की जन्नत, बाँझ, कमीशन, हिजड़ो की पार्लिमेंट, बम बोले , डिसिपीलिने, यह भी हिंसा है, मेरा क्या कसूर था, जिस लाहौर नै देख्या वो जामियां नै, ग़ालिब कौन है, रिहल्सल, गाँधी ने कहा था, खालिद की खाला, अंधेर नगरी, हम ही करेंगे, बद्ज़ात तितली ( नाट्य रूपांतरण " शकीला की माँ " अमृतलाल नागर आदि जैसे यथार्थिक और मार्मिक नाटकों को निर्देशित किया ।
रंगकर्म की उपरोक्त प्रस्तुतियों के मंचीयकरण में अदनान बिस्मिल्लाह जहाँ एक ओर सफ़दर हाश्मी की नुक्कड़-परम्परा के प्रतिबिंब नज़र आते है जिसे उन्होंने लगातार सड़को, चौक, चौहराहो, झुग्गी-बस्तियों में जा-जाकर पुनः जीवित करने की कोशिश की है तो दूसरी ओर हबीब तनवीर की प्रयोग-रीति और आशु-अभिनय को अपनाते हुए नाटकों के मंचन से नयी मिस्साल कायम की है। महान रंगकर्मी हबीब तनवीर के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी नाटिये प्रस्तुतियों में जिस शैली का इस्तेमाल करते थे कि एक, वह जिन कलाकारों का चुनाव करते थे, वह लोग मूल रूप से लोक-परम्पराओ से जुड़े होते थे। दूसरा, मंचन से पूर्व जिस आशु-अभिनय का वह अभ्यास करते थे, वे उन्हें असीम अनुभवों से भर देते थे और उनका नाटिये मंचन दर्शको के सामने एक नया उदाहरण बनकर पेश होती था।
मूलतः अदनान बिस्मिल्लाह भी उसी तकनीकी को आगे बड़ा रहे है। उसे ही व्यापक रूप देने की कोशिश कर रहे है लेकिन एक अदद बात अदनान बिस्मिल्लाह के रंगकर्म के बारे में अनोखी है कि उनका अबतक का रंगकर्म विद्यार्थियों के साथ रचा गया रंगकर्म है और यही उनके रंगकर्म की एक मूल विशेषता भी रही है कि उन्होनें विद्यार्थियों को रंगमंच के प्रति संवदेनशील और उसे समझने की कला को निखारने और साथ ही साथ उनमें प्रयोगशाली रहने की जिज्ञासा को ज़िदा करने की सूक्ष्म दृष्टि को विकसित करने का कार्य किया। विद्यार्थियों के साथ ही उन्होंने नए-नए प्रयोग किये । इन प्रयोगो में जहाँ एक ओर वह ब्रेखत के प्रयोगो को अपने नुक्कड़ रंगकर्म से जोड़ते रहे है तो दूसरी ओर स्तोलोनोवोस्की के प्रयोगो को अपने मंच-रंगमंच से कफ़न, हवालात, गाँधी ने कहा था, जिस लाहौर नई दैख्या वो जमिया नई और बदज़ात तितली जैसी सफल और अतिप्रशंसित नाटको का मंचन करके गूढ़-रिश्ता कायम किया है।
यह इन्ही प्रयोगो का प्रतिफल है कि जामिया ने नार्थ-ज़ोन और नेशनल यूथ फेस्टिवल में अपनी धाक जमाई है और यह धाक ही जामिया को राष्ट्रीय स्तर पर हस्ताक्षर कराने में मददगार रही। आज जामिया जिन " प्रतिभाओ के अजायबघर " से शुमार और चर्चित और नए प्रतिमान को गढ़ने में रंगमंच के रथ का सारथी बना हुआ है, रंगमंच को हरेक विद्यार्थी के लिए ज़रूरी और लाभदायक बनाने में पहल कर रहा है, वह अदनान बिस्मिल्लाह के रंगमंच की नाव के गतिशील रहने से ही निर्मित हो रही है और आशा करते है कि इस नाव का खवैया कभी इसको धूमिल और पत्थर नहीं होने देगा।
बारह से तेहरा वर्षो के अपने रंगकर्म में इन्होंने १०० के करीब नुक्कड़ों की प्रस्तुतियां दी । जिसमें गिरगिट, औरत , अपहरण बेचारे का, पुलिस चरित्रम, कुर्सी , बात का बतंगड़, सोच एक सवाल, संघर्ष हमारा नारा है, सड़क पर घर, मेह्गाई की मार, आर्तनाद, सोच आदि । कई मंच प्रस्तुतियां जिसमे - कफ़न, हवालात, कंजूस, दुलारी बाई, सबसे बड़ा आदमी, जवानी की डिब्बी, दो पैसे की जन्नत, बाँझ, कमीशन, हिजड़ो की पार्लिमेंट, बम बोले , डिसिपीलिने, यह भी हिंसा है, मेरा क्या कसूर था, जिस लाहौर नै देख्या वो जामियां नै, ग़ालिब कौन है, रिहल्सल, गाँधी ने कहा था, खालिद की खाला, अंधेर नगरी, हम ही करेंगे, बद्ज़ात तितली ( नाट्य रूपांतरण " शकीला की माँ " अमृतलाल नागर आदि जैसे यथार्थिक और मार्मिक नाटकों को निर्देशित किया ।
रंगकर्म की उपरोक्त प्रस्तुतियों के मंचीयकरण में अदनान बिस्मिल्लाह जहाँ एक ओर सफ़दर हाश्मी की नुक्कड़-परम्परा के प्रतिबिंब नज़र आते है जिसे उन्होंने लगातार सड़को, चौक, चौहराहो, झुग्गी-बस्तियों में जा-जाकर पुनः जीवित करने की कोशिश की है तो दूसरी ओर हबीब तनवीर की प्रयोग-रीति और आशु-अभिनय को अपनाते हुए नाटकों के मंचन से नयी मिस्साल कायम की है। महान रंगकर्मी हबीब तनवीर के बारे में कहा जाता है कि वह अपनी नाटिये प्रस्तुतियों में जिस शैली का इस्तेमाल करते थे कि एक, वह जिन कलाकारों का चुनाव करते थे, वह लोग मूल रूप से लोक-परम्पराओ से जुड़े होते थे। दूसरा, मंचन से पूर्व जिस आशु-अभिनय का वह अभ्यास करते थे, वे उन्हें असीम अनुभवों से भर देते थे और उनका नाटिये मंचन दर्शको के सामने एक नया उदाहरण बनकर पेश होती था।
मूलतः अदनान बिस्मिल्लाह भी उसी तकनीकी को आगे बड़ा रहे है। उसे ही व्यापक रूप देने की कोशिश कर रहे है लेकिन एक अदद बात अदनान बिस्मिल्लाह के रंगकर्म के बारे में अनोखी है कि उनका अबतक का रंगकर्म विद्यार्थियों के साथ रचा गया रंगकर्म है और यही उनके रंगकर्म की एक मूल विशेषता भी रही है कि उन्होनें विद्यार्थियों को रंगमंच के प्रति संवदेनशील और उसे समझने की कला को निखारने और साथ ही साथ उनमें प्रयोगशाली रहने की जिज्ञासा को ज़िदा करने की सूक्ष्म दृष्टि को विकसित करने का कार्य किया। विद्यार्थियों के साथ ही उन्होंने नए-नए प्रयोग किये । इन प्रयोगो में जहाँ एक ओर वह ब्रेखत के प्रयोगो को अपने नुक्कड़ रंगकर्म से जोड़ते रहे है तो दूसरी ओर स्तोलोनोवोस्की के प्रयोगो को अपने मंच-रंगमंच से कफ़न, हवालात, गाँधी ने कहा था, जिस लाहौर नई दैख्या वो जमिया नई और बदज़ात तितली जैसी सफल और अतिप्रशंसित नाटको का मंचन करके गूढ़-रिश्ता कायम किया है।
यह इन्ही प्रयोगो का प्रतिफल है कि जामिया ने नार्थ-ज़ोन और नेशनल यूथ फेस्टिवल में अपनी धाक जमाई है और यह धाक ही जामिया को राष्ट्रीय स्तर पर हस्ताक्षर कराने में मददगार रही। आज जामिया जिन " प्रतिभाओ के अजायबघर " से शुमार और चर्चित और नए प्रतिमान को गढ़ने में रंगमंच के रथ का सारथी बना हुआ है, रंगमंच को हरेक विद्यार्थी के लिए ज़रूरी और लाभदायक बनाने में पहल कर रहा है, वह अदनान बिस्मिल्लाह के रंगमंच की नाव के गतिशील रहने से ही निर्मित हो रही है और आशा करते है कि इस नाव का खवैया कभी इसको धूमिल और पत्थर नहीं होने देगा।
Well written. Awesome. If possible, attach a pic of Sir with his trademark cap that he wears.
ReplyDeletevo attch ki h mne
Deleteसुंदर, सराहनीय,
ReplyDeleteGood feature.. but do check some spelling error..
ReplyDeleteji...
ReplyDeleteoh..nice... adnan sir rock
ReplyDeleteक्या बात है अदनान भाई।
ReplyDeleteSahi ja raha hai adnan
ReplyDeleteबहुत-बहुत बधाई हो अदनान बहुत मेहनत की है इस बुलंदी पर पहुंचने के लिए भगवान हमेशा तुम्हारे साथ है हमारी दुआएं तुम्हारे साथ हैं लगे रहो बढ़ते रहो
ReplyDeleteMiyaan Ipta se Sab kuchh lekar use hi Bhool gaye
ReplyDeleteबेहतरीन व्यक्तित्व की बेहतरीन अभिव्यक्ति
ReplyDeleteWell done sir
ReplyDeleteशानदार अभिव्यक्ति, डॉक्टर अदनान बिस्मिल्लाह और उनके अनथक प्रयासो को सलाम....
ReplyDeleteअदनान भाई हमेशा की तरह सक्रिय रहते हैं।उनकी रचनात्मक सक्रियता को सलाम
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