Thursday 6 July 2017

नरेश सक्सेना : जनता के कवि

 नरेश सक्सेना 

              
               
                                                                             भूख                     

            भूख सबसे पहले दिमाग खाती है                  
                                              
उसके बाद आँखे 
फिर जिस्म में बाकी बची चीज़ो को 

छोड़ती कुछ भी नहीं है भूख 
वह रिश्तो को खाती है 
माँ का हो बहिन या बच्चो का  

बच्चे तो उसे बेहद पसंद है 
जिन्हे वह सबसे पहले खाती है 
और बड़ी तेज़ी से खाती है 

बच्चो के बाद फिर बचता ही क्या है 
  

                 अच्छे बच्चे                             

कुछ बच्चे बहुत अच्छे होते है 
वे गेंद और ग़ुब्बारे नहीं मांगते 
मिठाई नहीं मांगते ज़िद नहीं करते 
और मचलते तो है ही नहीं 

बड़ो का कहना मानते है 
वह छोटा का कहना भी मानते है 
इतने अच्छे होते है 

इतने अच्छे बच्चों की तलाश में रहते है हम 
और मिलते ही 
उन्हें ले आते है घर 
अक्सर 
तीस रुपए महीने और खाने पर    


ज़िंदा लोग 

ज़िंदा लोग ज़्यादा देर इंतज़ार नहीं करते 
इंतज़ार तो लाशे भी नहीं करती है 
एक दिन 
हद से हद दो दिन 
बस 
 हवा में उड़ने लगती है 

पीछा करती घेरती 
सीने पर हो जाती है सवार और 
वसूल करके  छोड़ती है  जायज़ न जायज़ हको को 

लाशो को हमसे ज़्यादा हवा चाहिए 
उन्हें हमसे ज़्यादा पानी चाहिए 
उन्हें हमसे ज़्यादा बर्फ चाहिए 
उन्हें हमसे ज़्यादा आग चाहिए 
उन्हें चाहिए इतिहास में हमसे ज़्यादा जगह 
इससे पहले कि पहले की वह घेर ले सारी जगह
मैं कहता हूँ कि 
इंतज़ार करती होंगी नदियां बारिश का 
वर्ष भर 
वसंत का  इंतज़ार करते होंगे वृक्ष 
लेकिन लोग 
ज़िदा लोग
ज़्यादा देर इंतज़ार  नहीं करते है 

  रात भर 

रात भर चलती है रेलें 
ट्रक ढोते है माल रात भर 
कारखाने चलते है 

कामगार रहते बेहोश 
होशमंद करवट बदलते है रात भर 
अपराधी सोते है  
अपराधों का कोई सम्बन्ध अब 
अँधेरे से नहीं रहा 

सुबह सभी दफ्तर खुलते है अपराध के  




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