Tuesday 18 July 2017

खलील गिब्रान और दार्शनिक लघु-कथाए


          खलील गिब्रान और दार्शनिक लघु-कथाएं


                                 


ख़लील गिब्रान लेबनान के सुप्रसिद्ध तथा चर्चित कवियो  और दार्शनिको में एक कालजयी व्यक्तित्व  है। उनकी लिखी गयी कृतियां इस संसार के लिए अविस्मरणीय है। तो आइये पढ़ते है उनकी कुछ दार्शनिक लघु-कथाऐं -

( युद्ध और छोटे देश )


एक बार ऊँचे पहाड़ पर  चारःगह में एक भेड़ और एक मैंमना चर रहे थे। वहीँ बहुत भूखी एक चील उनपर नज़र गड़ाए ऊपर मंडरा रही थी और ऐन उस वक़्त जब वह अपने शिकार पर झपटने के लिए डुबकी लगाने वाली थी , एक अन्य चील भेड़ और उसके बच्चे पर झपट पड़ी। बस दोनों प्रतिद्वंदी की चीखो से आसमान गूंज उठा।

भेड़ ने ऊपर देखा वह बेहद डर गयी और अपने बच्चे से बोली :

'' मेरे बच्चे , ये दोनों बहादुर पक्षी आपस में  लड़ रहे है। इतना बड़ा आसमान इनके लिए छोटा है ? दुआ करो , अपने में दिल में दुआ करो मेरे बच्चे कि ईश्वर तुम्हारे इन पंखो वाले भाइयो के बीच शांति कायम करे ''

और मैंमना अपने दिल में प्राथना करने लगा।


 ( भूखा आदमी )


    एक बार एक आदमी मेरी मेज़  पर आ बैठा। उसने मेरी रोटियां खाली और वाइन को पीकर,  मुझपर हसता हुआ चला गया।
रोटी और वाइन की तलाश में अगली बार वह फिर आया। इस बार मैंने उसे लात मार कर भगा दिया।
उस दिन फरिश्ता मुझ पर हंसा ।

 (सात कबूतर )


सात सौ साल पहले सात सफ़ेद कबूतर घाटी की गहराई में से बर्फ़ीले पहाड़ो की ओर उड़े।

उनकी उड़ान को देखने वाले सात लोगो में से एक ने कहा --

''सातवे कबूतर के पैरो पर मुझे एक कला धब्बा नज़र आ रहा है  ''

आज उस घाटी के लोगो को सफ़ेद पहाड़ो की ओर उड़े वे सातो ही कबूतर काळा नज़र आने लगे।






(आज़ादी )


वह मुझसे बोले -
'' किसी गुलाम को सोते देखो तो जगाओ मत। हो सकता है कि वह आज़ादी का सपना देख रहा हो  ''
मैंने कहा -
'' अगर किसी गुलाम को सोते देखो तो उसे जगाओ और आज़ादी के बारे मैं उसे बताओ ''


(आस्तिक और नास्तिक )


प्राचीन नगर आफगार में दो विद्वान रहते थे। वे एक दूसरे से नफरत करते थे और लगातर एक-दूर दूसरे के ज्ञान को नीचा दिखाने की कोशिश में लगे रहते थे । उनमे से एक देवताओ के आस्तिव्त को नकारता था, जबकि दूसरा उनमे विश्वास करता था।

एक बार वे दोनों बाजार में मिल गए और अपने-अपने चेलो की मौजदगी में वे वहीँ पर देवताओ के होने न होने पर तर्क-वितर्क करने लगे। घंटो बहस करने के बाद वे दोनों अलग हुए।

    उस शाम नास्तिक मंदिर में गया। उसने अपने आपको पूजा की वेदी के आगे दंडवत डाल दिया और देवताओ से अपनी पिछली सभी भूलों के लिए शमा मांगी।

    उसी दौरान, दूसरा विद्वान जो आस्तिक था , उसने अपने सरे धर्मग्रंथो को जला डाला और वह नास्तिक बन चुका था।


(युद्ध और शांति )


धूप सेंकते हुए तीन कुत्ते आपस में बात कर रहे थे।

आँख मुंदकर पहले कुत्ते ने जैसे स्वप्न में हो बोलना शुरू किया  --

'' कुत्ताराज मैं रहना का वाकई अलग मज़ा है सोचो , कितनी आसनी से हम समंदर के नीचे, धरती के ऊपर और आकाश में घूमते है। कुत्तो की सुविधा का लिए अविष्कार पर हम ध्यान ही नहीं, अपनी आँखे , अपने कान और नाक भी केन्द्रित कर देते है  ''

दूसरे कुत्ते ने कहा -

'' कला के प्रति हम अधिक संवदेनशील हो गए है।चन्द्रमा की ओर हम अपने पूर्वज का मुकाबले अधिक लयबद्ध होकर भोंकते है। पानी में अपनी परछाई हमें पहले से अधिक साफ दिखयी देती है ''

तीसरा कुत्ता बोला --
'' इस कुत्तारज की बात मुझे जो सबसे अधिक भाती है , वह यह कि कुत्तो के बीच बिना लड़ाई-झड़े किये , शांति पूर्वक अपनी बात कहने और दूसरे की बात सुनने की समझ बनाना है ''

उसी दौरान उन्होंने  कुत्ता पकड़ने  वालो को अपनी ओर लपकते देखा।

तीनो कुत्ते उछले और गली में दौड गए। दौड़ते-दौड़ते तीसरे कुत्ते ने कहा -

'' भगवन का नाम लो और किसी तरह अपनी ज़िन्दगी बचाओ।  सभ्यता हमारे पीछे पड़ी है । "


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